रजत जीतने वाली बिंदियारानी के पास नहीं थे जूते खरीदने के पैसे
कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारत को चार पदक मिल चुके हैं। सभी पदक वेटलिफ्टिंग में आए हैं।

टोक्यो ओलंपिक में देश को पहला पदक दिलाने वाली मीराबाई चानू से सभी को पहले ही स्वर्ण की उम्मीद थी और उन्होंने ऐसा ही किया। हालांकि, उनके अलावा संकेत, गुरुराजा और बिंदियारानी ने भी देश को पदक दिलाया। गुरुराज पहले भी कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीत चुके थे, लेकिन संकेत और बिंदियारानी ने पहली बार देश को पदक दिलाया है। एक गरीब परिवार में जन्मी बिदिंया के लिए कॉमनवेल्थ पोडियम तक का सफर करना आसान नहीं था। उन्होंने पदक जीतने के बाद बताया कि एक समय पर उनके पास जूते खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। ऐसे में मीराबाई चानू ने उन्हें जूते तोहफे के रूप में दिए थे। बिंदिया ने आगे कहा कि वो अमीर परिवार से नहीं आती हैं। इस वजह से उनके लिए नौकरी जरूरी है। हालांकि, कॉमनवेल्थ में देश के लिए पदक जीतने के बाद बिंदिया को आगे भी काफी मौके मिलेंगे।बिंदिया ने रजत पदक जीतने के बाद कहा "मैं अपने प्रदर्शन से बहुत खुश हूं। मैं अपने करियर के पहले गेम में खेल रही थी और मुझे बहुत खुशी है कि मैंने इसमें रजत पदक जीता। मैं पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स खेली और सिल्वर पाकर बहुत खुश हूं। आज मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था... सोना मेरे हाथ से फिसल गया। मेरा अगला लक्ष्य राष्ट्रीय खेल, विश्व चैम्पियनशिप, एशियाई खेल और फिर 2024 पेरिस ओलंपिक हैं। मैं उनमें बेहतर प्रदर्शन करूंगी।"मीराबाई चानू ने भी गरीब परिवार में बड़े होकर सफलता का शिखर छुआ है। वो बचपन में जलावन के लिए लकड़ियां लेने जाती थीं और उस समय उनका सपना तीरंदाज बनने का था। आठवीं में उन्होंने वेटलिफ्टिंग के बारे में पढ़ा और उन्होंने वेटलिफ्टिंग में अपना करियर बनाने के बारे में सोचा। वो ट्रक में लिफ्ट लेकर अपनी प्रैक्टिस के लिए जाती थीं और टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद उन ट्रक ड्राइवरों को घर बुलाकर खाना भी खिलाया था।