यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण रद्द करने का मामला, क्यों विपक्ष योगी सरकार को घेर रहा है?

anant tripathi report

यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण रद्द करने का मामला, क्यों विपक्ष योगी सरकार को घेर रहा है?
यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण रद्द करने का मामला, क्यों विपक्ष योगी सरकार को घेर रहा है?

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार की ओर से जारी ड्राफ्ट नोटिफ़िकेशन को रद्द कर दिया है और ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने के लिए कहा है. नोटिफ़िकेशन में उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर जो फार्मूला लागू किया था, उस पर कोर्ट सहमत नहीं हुआ. इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर पांच दिसंबर को जो अधिसूचना जारी की थी उसे कोर्ट के इस फैसले के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर एक नए सिरे से बहस शुरू हो गई है. विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया है. इस फैसले के बाद खुद बीजेपी भी मुश्किल है.भी खारिज़ कर दिया है.समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक निकाय चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गईं थीं. इसमें ओबीसी आरक्षण लागू करने के तरीके को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा कि रिजर्वेशन ड्राफ्ट में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का ध्यान नहीं रखा गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय फ़ॉर्मूले का पालन करना चाहिए और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की स्थिति के अध्ययन के लिए एक आयोग बनाना चाहिए. आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध और हिमायत करने वालों की दलीलें क्या हैं इस पर यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने एक 'रैपिड सर्वे कराया और ये ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले की ही तरह था.' यूपी सरकार ने इस महीने की शुरुआत में प्रदेश की 17 महापालिकाओं के मेयरों, 200 नगर पालिका और 545 नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण की प्रोविजनल लिस्ट जारी की थी. पांच दिसंबर को जारी लिस्ट के मुताबिक प्रदेश में चार मेयर सीट (अलीगढ़, मथुरा-वृंदावन, मेरठ और प्रयागराज) को ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया था. इनमें से अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिला के लिए आरक्षित थी. नगरपालिका अध्यक्ष की 54 और नगर पंचायत अध्यक्ष की 147 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित की गईं थीं. लेकिन कोर्ट ने प्रदेश सरकार की ओर से दिए इस रिज़र्वेशन ड्राफ्ट को खारिज कर दिया. कोर्ट का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा. यह फै़सला न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सुनाया है. ओबीसी संविधान संशोधन: बीजेपी का चुनावी वार या मिली विपक्ष को धार नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण तय करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाता है, जो निकायों में पिछड़ेपन का आकलन करता है. इसके बाद सीटों के लिए आरक्षण को प्रस्तावित किया जाता है. दूसरे चरण में ओबीसी की संख्या पता की जाती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फ़ैसले के बाद बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार नगर निकाय सामान्य निर्वाचन के लिए एक आयोग गठित करेगी. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण दिया जाएगा. कोर्ट के आदेश के बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ज़रूरी हुआ तो उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकती है. आरक्षण मामले में राज्यों को सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्टमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्विटर पर जानकारी दी, "यदि आवश्यक हुआ तो माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करके प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी करेगी." उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा!" तीसरे चरण में सरकार के स्तर पर इसे सत्यापित किया जाता है