मध्य प्रदेश: बाघ और तेंदुओं की बड़ी तादाद में हो रही मौतों की वजहें जानिए
palak sharma report

बाघों की सबसे ज़्यादा संख्या वाले मध्य प्रदेश में पिछले एक साल में बाघों की सबसे ज़्यादा मौतें दर्ज की गई हैं. मध्य प्रदेश के वन विभाग के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में पिछले एक साल में 38 बाघ मरे हैं जो दूसरे किसी भी राज्य से सबसे ज़्यादा हैं. न सिर्फ़ बाघ, मध्य प्रदेश वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान सबसे ज़्यादा 87 मौतें तेंदुओं की भी मौत हुई है. बाघों के संरक्षण को लेकर भारत सरकार की बनाई गई महत्वाकांक्षी परियोजना 'प्रोजेक्ट टाइगर' को शुरू हुए भी इस साल अप्रैल माह में 50 साल पूरे हो जाएँगे. वर्ष 2018 में वन्य-प्राणियों के 'सेन्सस' में मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या 526 दर्ज की गई 2022 में भी गणना की गई थी जिसकी रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है. ये गणना भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन 'नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी' और 'प्रोजेक्ट टाइगर' मिलकर करते हैं. पूरे भारत में इस समय बाघों की कुल संख्या 3000 के आस-पास बताई जाती है. मध्य प्रदेश के जंगलों में हो रही इतनी मौतों ने वन्य प्राणियों के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों के साथ साथ राज्य के उच्च न्यायलय की भी चिंता बढ़ा दी है. मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय को इतने बड़े पैमाने पर हो रही बाघों की मौतों का संज्ञान लेते हुए हस्तक्षेप करना पड़ा और अदालत को इन मौतों की 'सघन जांच' के आदेश भी जारी करने पड़े. मध्य प्रदेश सरकार के प्रमुख मुख्य वन रक्षक जसवीर सिंह चौहान ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि प्रदेश में मुख्य तौर पर 6 'टाइगर रिज़र्व' हैं - पेंच, बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना, संजय और सतपुड़ा. उनका कहना है कि दो तरह की मौतें दर्ज की गई हैं- प्राकृतिक और अप्राकृतिक. चौहान कहते हैं कि एक बाघ की औसत आयु 12 वर्ष की होती है. वो कहते हैं कि अगर प्रदेश में बाघों की संख्या 526 है, उस हिसाब से इतनी मौतें होना बहुत बड़ी बात नहीं है लेकिन जिस बात पर वन विभाग की चिंता बढ़ी हुई है वो है बाघों की अप्राकृतिक मौतें. वो कहते हैं कि जो कुल 38 बाघ पिछले साल मरे हैं उनमें अप्राकृतिक मौतों का आंकड़ा सिर्फ़ आठ का है. चौहान के अनुसार, "इसके कई कारण हो सकते हैं. इनमें से जो मुख्य कारण अभी तक सामने आया है वो है बिजली का करंट लगने से मरना. किसी-किसी घटना में ज़हर देकर मारने के सुबूत भी मिले हैं जबकि कुछ ज़्यादा मामले बाघों के फंदे में फँस जाने से हुई उनकी मौत के हैं. कुछ मामलों में क्षेत्र पर अधिकार को लेकर बाघों में आपस में हुई लड़ाई भी सामने आई है." इस साल जनवरी माह में सिवनी ज़िले में एक बाघ की करंट लगने से मौत हुई. ये घटना जंगल से लगे बकरमपथ गाँव की बताई गई है. वन विभाग की जांच में पाया गया कि बाघ गाँव से होकर गुज़रने वाली 11 किलोवॉट की बिजली के तार के चपेट में आ गया था. उसी तरह पन्ना टाइगर रिज़र्व में भी एक बाघ के अवशेष पेड़ से लटके हुए मिले. चौहान का कहना है कि जाँच में जो बात सामने आई है उससे पता चलता है कि अक्सर गाँव वाले अपनी फ़सल को जानवरों से बचाने के लिए जो फंदा लगाते हैं, ये बाघ उसी फंदे में फँस गया था. मध्य प्रदेश के वन विभाग की ही रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले पांच सालों में जहाँ 171 बाघ प्रदेश में मरे हैं, वहीं 310 तेंदुए भी मरे हैं. जबकि वर्ष 2021 में बाघों के मरने की संख्या सबसे ज़्यादा 45 दर्ज की गई थी, वहीं पिछले साल मध्य प्रदेश के जंगलों में 87 तेंदुए भी मरे थे. चौहान कहते हैं कि तेंदुए, बाघों से ज़्यादा बड़े दायरे में घूमते हैं. वो बाहर भी निकल जाते हैं. इस वजह से ये हादसे बढ़ जाते हैं. हालांकि उनका दावा है कि 'पोचिंग' यानी शिकार की घटनाएँ अब नहीं के बराबर ही रह गई हैं लेकिन जिस याचिका के आधार पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने बाघों की मौतों की जांच के आदेश दिए हैं उसमें आरोप लगाया गया है कि प्रदेश के जंगलों में बड़े पैमाने पर शिकार भी जारी है. याचिकाकर्ता और पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता अजय दुबे ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जो याचिका उन्होंने उच्च न्यायलय में दायर की है उसमे कम-से-कम सात बाघों की मौत का कारण शिकार बताया गया है. वो कहते हैं कि बाघों के गले में महंगे 'सेटलाइट कॉलर' लगे होने के बावजूद वो शिकारियों का निशाना बन रहे हैं या फिर फंदों में फंसकर मर रहे हैं. अजय कहते हैं कि ये बात सही है कि बाघों की औसत आयु 12 वर्ष के आसपास ही है. लेकिन मध्य प्रदेश में हो रही मौतों का कारण सामान्य नहीं है. वो कहते हैं कि जिस तरह वन विभाग ने बाघ क्षेत्रों के 'बफ़र ज़ोन' को पर्यटन के लिए खोल दिया है उससे वन्य प्राणियों पर दबाव बढ़ रहा है. बीबीसी हिंदी से उनका कहना था कि कर्नाटक में भी बाघों की संख्या 500 से ऊपर ही है मगर वहां मृत्यु दर मध्य प्रदेश से कम है. इस पर मध्य प्रदेश के मुख्य प्रमुख वन्य जीव रक्षक जसवीर सिंह चौहान जवाब देते हैं, "कर्नाटक के बाघ को क्या वहाँ अमृत पिलाया जा रहा है? जब 500 से ज़्यादा संख्या उनकी वहां भी है तो उसी अनुपात में प्राकृतिक मौतें भी होना स्वाभाविक है जो औसतन प्रतिवर्ष 30 के आस-पास होनी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है तो कुछ गड़बड़ ज़रूर है. या तो फिर वहां पर बाघों की सही निगरानी है हो रही है और उनकी मौत होने की सूरत में महकमे को इसकी सूचना भी नहीं मिल रही होगी. अगर महकमा मरे बाघों का शव बरामद ही नहीं करेगा तो कैसे पता चलेगा." चौहान दावा करते हैं कि मध्य प्रदेश में हर 'टाइगर रिज़र्व' में बाघ की गतिविधियों पर वन विभाग के पूरे अमले की नज़र 24 घंटे रहती है. वो कहते हैं कि सब पर कॉलर लगे हुए हैं और सेटेलाइट के माध्यम से उनके विचरण की निगरानी रखी जाती है. भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत अधिकारी प्रवीण चन्द्र दुबे मानते हैं कि बाघों की ज़्यादा मौतों का एक सबसे बड़ा कारण है जंगलों पर दबाव बनना और उनका सिकुड़ना. चाहे वो राष्ट्रीय उद्यान हों या फिर अभयारण्य हों. प्रवीण चंद्र कहते हैं कि जंगलों में वैसे जानवर भी मौजूद होने चाहिए जिनका शिकार बाघ या दूसरे शिकारी पशु कर सकें और अपना पेट भर सकें लेकिन उनकी संख्या कम होती जा रही है. दुबे कहते हैं, "बाघ, तेंदुआ या चीता किसका शिकार करेगा? ये महत्वपूर्ण सवाल है. इनकी संख्या कम होती जा रही है और भोजन के अभाव में बाघ अपने जंगलों से निकलकर या तो पहाड़ों की तरफ़ पेट भरने जाते हैं या फिर जंगल के बाहर मौजूद गाँवों में. इस वजह से द्वन्द बढ़ रहा है. गाँव के लोग अपनी फ़सल को चरने वाले जानवरों से बचाने के लिए तरह तरह के इंतज़ाम करने लगे हैं. दुर्भाग्य से इन फंदों में बाघ और तेंदुए फँस रहे हैं." वन्य प्राणी विशेषज्ञों की सलाह रही है कि जिन जंगलों को बाघों को संरक्षित और सुरक्षित रहने के लिए बनाया गया है उनके आसपास और जगह देनी चाहिए जिसकी वजह से उनके विचरण करने का क्षेत्र सिकुड़ता ना चला जाए. साथ ही, ऐसे अभयारण्यों के आस-पास से लोगों का आना-जाना भी सीमित रखने की बहुत ज़रूरत है. जिस याचिका पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया है और आदेश पारित किए हैं उसमें भी आरोप लगाया गया है कि टाइगर रिज़र्व में मौजूद 'बफ़र ज़ोन' के अन्दर 'पर्यटन को बढ़ावा' देने के लिए किये गए निर्माण की वजह से 'कम से कम 7 बाघों की मौत' हुई है. इस पर अदालत के आदेश पर राज्य के वन विभाग के पूर्व मुख्य सचिव और राज्य के इको पर्यटन परिषद के तत्कालीन सीईओ पर आपराधिक और प्रशासनिक कार्यवाही शुरू कर दी गई है.