प्रवासी भारतीय सम्मेलन के आख़िरी दिन क्यों शर्मिंदा हुए शिवराज सिंह चौहान?
ajay kumar report

प्रवासी भारतीय सम्मलेन के आख़िरी दिन मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और दो अन्य राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में ऐसा कुछ हुआ कि वहां मौजूद लोग सकते में आ गए. ये क्षण था जब राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रवासी भारतीयों से माफ़ी मांगनी पड़ी. समापन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, "मैं दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी माँगता हूँ. अगर कोई असुविधा हुई है तो मैं दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी माँगता हूँ." आख़िर क्यों शिवराज सिंह चौहान को सम्मलेन में शामिल होने आए प्रवासी भारतीयों से माफ़ी मांगनी पड़ी? इसकी वजह है सोमवार को उद्घाटन समारोह के दौरान फैली अव्यवस्था जिसकी वजह से आधे से ज़्यादा प्रवासियों को समारोह स्थल के अंदर जाने नहीं दिया गया .ये वो वक़्त था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत करने आए थे. समारोह स्थल यानी कन्वेंशन सेंटर में जहां प्रवासी भारतीयों को बैठना था, उन कुर्सियों पर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और राज्य सरकार के अधिकारी बैठे हुए थे.प्रतिनिधियों से कहा गया कि वो अन्दर नहीं जा सकते क्योंकि कुर्सियां भरी हुई हैं. इसको लेकर समारोह स्थल के सभागार में जाने से वंचित किए गए प्रवासी भारतीय प्रतिनिधियों ने आक्रोश व्यक्त किया. स्थिति ऐसी बन गयी थी कि एक 'बैरिकेड' को इन प्रतिनिधियों ने तोड़ दिया. जमैका से सम्मलेन में आये प्रवासी प्रशांत सिंह भी बहुत नाराज़ नज़र आए. वहां मौजूद पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के लिए उन्होंने जमैका में काफ़ी मेहनत की थी और वहां से कई प्रतिनिधियों को लेकर आये थे. उनका कहना था कि उनके साथ जमैका के कुछ संसद के सदस्य भी आये हैं. मगर उन्हें सभागार में घुसने नहीं दिया गया. प्रशांत सिंह कहते हैं कि जब 3000 प्रतिनिधियों का सही ढंग से प्रबंधन करने की क्षमता नहीं थी तो इंदौर में इस कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए था. वो कहते हैं, "हम विश्व शक्ति कैसे बन सकते हैं, जब हम विदेश से आए 3000 महमानों के लिए इंतज़ाम तक सही तरह से नहीं कर सकते. ये बहुत ही तकलीफ़देह है." जूली जैन अमेरिका से इस समारोह में शामिल होने आयी थीं. उन्हें भी सभागार के अन्दर जाने नहीं दिया गया. उनका कहना था, "हम अमेरिका से इतना पैसा ख़र्च कर इस सम्मलेन में शामिल होने आए हैं. हमें ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. हमसे कहा गया कि आप समारोह को टीवी स्क्रीन पर देख लीजिए. '' ''अगर टीवी पर ही देखना था तो अपने घर पर ही बैठ कर देख लेते. इतने पैसे ख़र्च करके भारत नहीं आते. समरोह को 9.30 बजे सुबह शुरू होना था. हम 8 बजे पहुँच गए थे. हमसे कह दिया गया कि कुर्सियां फ़ुल हैं." जूली जैन का कहना था कि समारोह में शामिल होने आये प्रतिनिधियों की कुर्सियों पर सरकारी अधिकारी बैठे हुए थे. वो कहती हैं, "अतिथि देवो भवः का नारा दिया गया था. क्या ऐसे होता है मेहमानों का स्वागत? वो भी तब जब आपको पता है कि कितने लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया है और कितने लोग आपके समारोह में पहुंचे हैं. फिर भी ऐसी बदइंतज़ामी? इतने बेइज्ज़त हुए हैं हम, कह नहीं सकते.'' ''अमेरिका से आए हमारे दल में बहुत से लोग ऐसे हैं जो निवेश करने का मन बनाकर आए थे. मगर अब सोचने पर मजबूर हो गए हैं. आपको पता है सब यहाँ मोदी जी की वजह से ही आए हैं. और जिस दिन वो आये उसी दिन ये अराजकता हुई." पीएम मोदी का भाषण सुनने से वंचित किया गया कन्वेंशन सेंटर में मौजूद कुछ प्रवासियों का कहना था कि सम्मलेन में शामिल होने वाले सभी प्रवासियों का पंजीकरण सरकार ने किया है. इसलिए कितने लोग शामिल हो रहे हैं उसकी पूरी जानकारी सरकार और आयोजकों के पास पहले से मौजूद थी. वो कहते हैं कि जितने लोगों को बुलाया गया था उनके हिसाब से ही स्थल और बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए थी. अमेरिका से आई रीना जौहर कहती हैं कि वो अपनी मां के लिए पानी तक का इंतज़ाम नहीं कर पाईं. और जब वो पानी के लिए बाहर आईं तो उन्हें अंदर ही नहीं जाने दिया गया. वो कहती हैं, ''हम साफ़ देख सकते थे कि प्रधानमंत्री मोदी के आने से पहले जो कुर्सियों पर बैठे हैं, वो प्रवासी तो नहीं थे. तो फिर वो कौन थे और हमें उनकी जगह बाहर क्यों रखा गया. ये समझ नहीं आया.'' प्रवासियों का ये गुस्सा रविवार को तब फूटा जब सुरक्षा जांच को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने से पहले सख्ती की गई. हमने जितने लोगों से बात की, उनके हिसाब से ये बात साफ़ थी कि ज़्यादातर लोग पीएम मोदी की वजह से समारोह में आए थे. लेकिन उन्हें सुनने से वंचित कर दिया गया. प्रवासियों का ये गुस्सा सम्मेलन के आख़िरी दिन तक दिखा जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू समारोह का औपचारिक समापन करने आईं. आख़िरी दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने समापन के साथ प्रवासी भारतीयों को सम्मानित भी किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब मंच से बोल रहे थे तो उन्होंने जो हुआ उसका पूरा बचाव करने की कोशिश की. शिवराज ने कहा कि "हमने कोई अपनी तरफ़ से कोई कसर तो नहीं छोड़ी. लेकिन प्रधानमंत्री जी की लोकप्रियता ऐसी थी कि हॉल छोटा पड़ गया. मैं आपसे निवेदन कर रहा हूँ, एमपी को भूलना मत. निवेश में जो योगदान हो सकता है, करें. आप ख़ुद भी निवेश करें, दूसरों से भी करवाएं." मगर आयोजन के दौरान अव्यवस्था की वजह से सम्मलेन में आए प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा तबक़ा है जो निराश नज़र आया. सिर्फ़ इतना ही नहीं पिछले तीन दिनों से इंदौर के शहरवासियों को भी बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. शहर के कई हिस्सों को लोहे की चादरों से ढक दिया गया. समारोह स्थल के आसपास के कई मुहल्लों में लोगों ने कोविड के समय हुए लॉकडाउन जैसी स्थिति को एक बार फिर महसूस किया. समारोह स्थल के नज़दीक के मोहल्लों को चारों तरफ़ बैरिकेड से घेरे रखा गया. दुकानों को बंद रखने के आदेश दिए गए. सड़कों पर भी वही आलम था जहां आवाजाही पर रोक थी. यहाँ तक कि सम्मलेन में शामिल होने जा रहे पासधारी लोगों को भी जाने से रोका जाता रहा. कई मार्गों पर वीआईपी के दौरों को लेकर मार्गों को परिवर्तित कर दिया गया जिससे दूसरे मार्गों पर जाम में फंसे लोग परेशान होते रहे. अब बुधवार से इंदौर में विदेशी निवेशकों का सम्मेलन शुरू हो रहा है. दो दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन का आयोजन मध्य प्रदेश सरकार कर रही है, बड़ी तादाद में उन्हीं प्रवासी भारतीयों को शामिल होना है जो 17वें सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए थे. इसलिए सवाल अब निवेशकों के सम्मेलन को लेकर भी उठ रहे हैं कि क्या यहां वो व्यवस्था नज़र आएगी जो प्रवासी भारतीय सम्मेलन में नज़र नहीं आई थी.