गुरू-शिष्य परंपरा को नई शिक्षा व्यवस्था में प्रतिष्ठापित किए जाने की ज़रूरत: कुलपति प्रो. राजबीर सिंह
गिरीश सैनी Report

रोहतक। भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में समग्र शिक्षा के साथ-साथ मूल्यों की शिक्षा भी समाहित रही। गुरू-शिष्य परंपरा इस शिक्षा प्रणाली को अनूठा बनाती है। आज जरूरत है कि गुरू-शिष्य परंपरा को नई शिक्षा व्यवस्था में प्रतिष्ठापित किया जाए। यह कहना है एमडीयू के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह का। वह गुरू-शिष्य परंपरा विषय पर आयोजित शैक्षणिक कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में य अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय शिक्षण मंडल, हरियाणा, एमडीयू के इंटर्नल क्वालिटी एस्युरेंस सेल तथा फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर द्वारा संयुक्त रूप से स्वराज सदन में किया गया। कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने कहा कि एमडीयू में एनईपी 2020 के तहत भारतीय संस्कृति और भाषा, नैतिक शिक्षा, समेत अन्य वैल्यु एडैड पाठ्यक्रम शुरू किए जा रहे है। विश्वविद्यालय में योग अध्ययन तथा वैदिक अध्ययन केन्द्र स्थापित किए गए हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ-साथ भारतीय शिक्षा पद्धति की प्राचीन परंपराओं को एमडीयू पाठ्यक्रमों में समाहित किया जाएगा। बतौर मुख्य वक्ता भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय आयोजन संयुक्त सचिव बी.आर. शंकरानंद ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की समृद्ध विरासत तथा इसमें समाहित कालजयी मूल्यों की चर्चा की। उन्होंने भारत में गुरू शिष्य परंपरा की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत पुन: विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है। बतौर विशिष्ट अतिथि कार्यक्रम में उपस्थित इंदिरा गांधी विवि, मीरपुर, रेवाड़ी के कुलपति प्रो. जे.पी. यादव ने गुरू शिष्य परंपरा को महान बताते हुए इस समृद्ध परंपरा की व्याख्या की। इस कार्यक्रम में एमडीयू समेत अन्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विद्यालयों के शिक्षकों को सम्मानित किया गया।