सोशल स्टिग्मा को तोड़ती फिल्म - 'जनहित में जारी'

क्या आप कंडोम खरीदते समय झिझक महसूस करते हैं? क्या आप अपने पड़ोस की दुकान से कंडोम नहीं खरीद पाते? क्या ये सवाल आपको असहज कर रहे हैं? अगर हां तो ‘जनहित में जारी’आपको जरूर देखनी चाहिए।

सोशल स्टिग्मा को तोड़ती फिल्म - 'जनहित में जारी'

विशुद्ध मनोरंजन और प्रेमकथाओं से इतर, बॉलीवुड में अब सामाजिक मुद्दों को तरजीह मिलने लगी है। 'छपाक', ‘पैडमैन’, 'बधाई हो', 'थप्पड़', ‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा, 'पिंक' सहित अनेक फिल्में हैं, जो सम-सामयिक मुद्दों पर बनाई गई हैं। हालिया रिलीज फिल्म ‘जनहित में जारी’ में भी एक ऐसा ही सामाजिक विषय उठाया गया है, जिस पर बात करने से अमूमन पर कोई कतराता नजर आता है। कहानी - फिल्म की कहानी घूमती है मध्य प्रदेश के एक छोटे शहर की आम लड़की मनोकामना त्रिपाठी यानि नुसरत भरूचा के इर्द गिर्द। एक आम मध्यम वर्गीय परिवार की तरह मनोकामना के माता पिता उसकी शादी करना चाहते हैं। लेकिन मनोकामना शादी के बजाय अपना करियर बनाना चाहती हैं। नौकरी ढ़ूंढ़ने की जद्दोदहद के बीच शादी से बचने के लिए मनोकामना एक कंडोम कंपनी में काम करने लगती है। अच्छी नौकरी मिलने के बाद मनोकामना को रंजन (अनुद सिंह ढ़ाका) के रूप में उसका प्यार मिलता है। दोनों की शादी हो जाती है। इसके बाद क्या होता है जब मनोकामना के ससुराल वालों को पता लगता है कि वो कंडोम निर्माता कंपनी में काम करती है। कैसे नुसरत लोगों को जागरुक करती है। इसी कहानी पर आधारित है ‘जनहित में जारी’। बिना फालतू ज्ञान बांटे कहानी को काफी सधे हुए और हल्के व मनोरंजक तरीके से पेश किया गया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले और निर्देशन - जय बसंतू सिंह के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सोशल स्टिग्मा को टूटते हुए दिखाया गया है। दर्शकों को हंसाने के साथ ही ये फिल्म एक जरूरी सीख भी देती है। इस फिल्म में जान फूंकी है इसके स्क्रीनप्ले, डायरेक्शन और डायलॉग ने। इस फिल्म के जरिए लेखक राज शांडिल्य ने अबॉर्शन जैसे गंभीर मुद्दे को भी उठाया है। शांडिल्य की कलम से निकले पंच लाइंस और वन लाइनर्स कमाल के हैं। हास्य के साथ गंभीरता का जबरदस्त कॉम्बो आपको फिल्म के दौरान सीट से हटने नहीं देता। कैसी है एक्टिंग - फिल्म का कोई भी किरदार ऐसा नहीं जिसने अपने रोल को बखूबी ना जिया हो। नुसरत भरूचा ने एक आम लड़की के रोल को बेहद प्रभावी ओर शानदार ढ़ंग से निभाया है। वह ऐसी लड़की के किरदार में नजर आई जो रूढ़िवादी और कट्टर समाज को एक नई और जरूरी शिक्षा दे रही हैं। अनुद सिंह ने भी अपने रोल में जान डाल दी। एक लोकल कंडोम मैन्युफैक्चरर के रोल में बृजेंद्र काला अपनी डॉयलॉग डिलीवरी से प्रभावित करते हैं। विजय राज ने नुसरत के ससुर का किरदार जबरदस्त तरीके से निभाया है। फिल्म में हर किरदार ने कमाल की एक्टिंग की है। क्यों देखें - एक जरूरी संदेश देती यह फिल्म मनोरंजन के साथ साथ गंभीरता से सोचने पर मजबूर करती है। जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार के करोड़ों खर्चने के बावजूद कोई खास असर नहीं दिखता। लोगों को समझाने के लिए यह फिल्म एक अच्छा तरीका साबित हो सकती है।