धरती की रक्षा के लिए होगा प्राकृतिक खेती के लिए बोर्ड का गठन

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धरती की रक्षा करनी है तो प्राकृतिक खेती की तरफ जाना ही होगा। इसके लिए आवश्यकता पड़ेगी तो बोर्ड गठन की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा।

धरती की रक्षा के लिए होगा प्राकृतिक खेती के लिए बोर्ड का गठन

पीएम की मंशा के अनुरूप खेती को विषमुक्त करना है। सीएम ‘उप्र सतत एवं समान विकास की ओर’ विषय पर आयोजित कान्क्लेव को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सीएम योगी ने कहा कि इस देश में ऋषि और कृषि एक दूसरे से जुड़े थे। गोवंश आधार था। अब फिर से उसी पर जाना होगा। कम लागत में केवल प्राकृतिक खेती ही किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा सकती है। देश में कृषि पहले नंबर पर और एमएसएमई दूसरे नंबर पर है। आज प्रदेश में 90 लाख एमएमएमई इकाइयां हैं। यदि दोनों एक दूसरे से बेहतर तरीकेसे जुड़ जाएं तो सूरत बदल जाएगी। इसका प्रयास भी चल रहा है।इसी तरह से खेती में रसायनों का प्रयोग होता रहा तो आने वाले साठ साल में खेती की जमीन पूरी बंजर, फर्श जैसी हो जाएगी। इससे बचना है तो प्राकृतिक खेती को अपनाना होगा। कान्क्लेव में विश्व बैंक साउथ एशिया रीजन के प्रैक्टिस मैनेजर ओलिवर ब्रेड्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने विस्तार से जैविक यानी आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती का फर्क बताया। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती को तो बिल्कुल ही नहीं करना है। जैविक खेती का भी कोई लाभ नहीं। केवल प्राकृतिक खेती करनी है। वह अपने गुरुकुल की दो सौ एकड़ में, हिमाचल प्रदेश में और गुजरात में लाखों किसानों को इस खेती से जोड़ चुके हैं। जैविक खेती में एक एकड़ जमीन के लिए तीस गायों का गोबर चाहिए जबकि प्राकृतिक खेती में तीस एकड़ जमीन के लिए एक गाय का गोबर काफी है।गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ सूक्ष्म जीवाणु तेजी से बढ़ते हैं। जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है।