शरद यादव: सामाजिक न्याय के बड़े योद्धा जिन्हें जीवन भर झेलनी पड़ी राजनीति की धूप छांव

ajay kumar report

शरद यादव: सामाजिक न्याय के बड़े योद्धा जिन्हें जीवन भर झेलनी पड़ी राजनीति की धूप छांव

भारतीय राजनीति में क़रीब 50 साल तक सक्रिय रहे शरद यादव का 75 साल की उम्र में गुड़गांव के फ़ोर्टिस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में गुरुवार की रात नौ से दस बजे के बीच निधन हो गया. इसकी पुष्टि इंस्टीट्यूट और शरद यादव की बेटी दोनों ने की. इंस्टीट्यूट की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उन्हें अचेतावस्था में लाया गया था और डॉक्टरों के अथक प्रयास के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. वहीं बेटी सुभाषिनी शरद यादव ने रात के 11 बजे से थोड़ी देर पहले ट्वीट किया, "पापा नहीं रहे."भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में उन्हें डॉक्टर लोहिया के विचारों से प्रभावित नेता बताया और लिखा, ''मैं उनकी यादों को संजो कर रखूंगा.'' शरद यादव इन दिनों लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल से जुड़े थे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी समाजवादी राजनीति में उनके योगदान को याद किया.दरअसल, शरद यादव पिछले कुछ समय से स्वास्थ्यगत मुश्किलों का सामना कर रहे थे, लेकिन चार महीने पहले उनकी तबीयत में सुधार होने लगा था. चार महीने पहले उनके दक्षिण दिल्ली के उनके आवास पर बिहार के नेताओं ने मुलाकात भी की थी.उम्मीद की जाने लगी थी कि वे सार्वजनिक राजनीति में फिर से सक्रिय होंगे. सितंबर महीने में वे दो दिनों के लिए पटना भी गए. राजनीतिक गलियारों में यह कयास भी लगाए जाने लगा था कि 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्ष की एकजुटता में उनकी अहम भूमिका हो सकती है. वे ख़ुद भी इसको लेकर उत्सुक थे, लेकिन स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया. क़रीब 50 साल की समाजवादी राजनीति का सफ़र अब थम चुका है. वैसे तो बीते पांच साल से शरद यादव एक तरह से राजनीतिक बियाबान में थे और पिछले साल दिल्ली के जंतर मंतर स्थित उन्हें वह सरकारी बंगला भी खाली करना पड़ा था, जो क़रीब 22 साल तक उनकी राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र में रहा.शरद यादव का सफ़र आज की पीढ़ी को शरद यादव के राजनीतिक योगदान और उनके क़द का अंदाज़ा भले नहीं हो, लेकिन गैर कांग्रेसी सरकारों में वे पावरफ़ुल नेता माने जाते रहे, हालांकि कभी किसी पावरफ़ुल मंत्रालय की कमान उनके ज़िम्मे नहीं आई. शरद यादव के राजनीतिक सफ़र में उनकी जो सबसे बड़ी ताक़त थी, वही उनके लिए हमेशा कमज़ोरी साबित हुई. शरद यादव ने मध्य प्रदेश के एक मध्यवर्गीय परिवार से निकल कर अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था. जबलपुर से शुरू हुआ उनका करियर यूपी के रास्ते से होता हुआ बिहार पहुंचा. यानी इस हिसाब से देखें तो ये एक ख़ासियत है, लेकिन इसकी कमज़ोरी यह रही कि किसी भी सीट को अपनी सीट के तौर पर तब्दील नहीं कर सके. शरद यादव, अपने समकालीन सामाजिक न्याय के नेताओं से सीनियर रहे. इसलिए सिंगापुर में अपना इलाज करा रहे लालू प्रसाद यादव ने उन्हें अपना बड़ा भाई बताया. लालू प्रसाद के राजनीतिक करियर में शरद यादव का अहम योगदान रहा है. पर यह पड़ाव शरद यादव के करियर में बहुत बाद में आया. शरद यादव के जीवन पर एक नज़र मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जुलाई, 1947 में जन्मे शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के गोल्ड मेडलिस्ट थे जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वो शरद यादव थे 27 साल के शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे. जेल से ही जबलपुर का चुनाव जीत लिया. जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक शरद यादव की जीत से ही मिली शरद यादव के राजनीतिक जीवन में दूसरा अहम मोड़ आया 1989 में, जब वे जनता दल के टिकट पर बदायूं से लोकसभा में पहुंचे वीपी सिंह की सरकार में वे कपड़ा मंत्री तो थे, लेकिन जब देवीलाल और वीपी सिंह में नहीं बनी तो उन्होंने वीपी सिंह का साथ दिया बिहार में मधेपुरा की पहचान यादवों के गढ़ के तौर पर होती है और वहां से शरद यादव 1991, 1996, 1999 और 2009 में जीते वो मधेपुरा से चार बार हारे भी. 1998, 2004 में लालू प्रसाद से, 2014 में आरजेडी उम्मीदवार पप्पू यादव से और 2019 में जेडीयू के दिनेश यादव से 2003 से 2016 तक शरद यादव जनता दल (यूनाइटेंड) के अध्यक्ष रहे शरद यादव के जीवन पर एक नज़र मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जुलाई, 1947 में जन्मे शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के गोल्ड मेडलिस्ट थे जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वो शरद यादव थे 27 साल के शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे. जेल से ही जबलपुर का चुनाव जीत लिया. जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक शरद यादव की जीत से ही मिली शरद यादव के राजनीतिक जीवन में दूसरा अहम मोड़ आया 1989 में, जब वे जनता दल के टिकट पर बदायूं से लोकसभा में पहुंचे वीपी सिंह की सरकार में वे कपड़ा मंत्री तो थे, लेकिन जब देवीलाल और वीपी सिंह में नहीं बनी तो उन्होंने वीपी सिंह का साथ दिया बिहार में मधेपुरा की पहचान यादवों के गढ़ के तौर पर होती है और वहां से शरद यादव 1991, 1996, 1999 और 2009 में जीते वो मधेपुरा से चार बार हारे भी. 1998, 2004 में लालू प्रसाद से, 2014 में आरजेडी उम्मीदवार पप्पू यादव से और 2019 में जेडीयू के दिनेश यादव से 2003 से 2016 तक शरद यादव जनता दल (यूनाइटेंड) के अध्यक्ष रहे [ मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जुलाई, 1947 में जन्मे शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के गोल्ड मेडलिस्ट थे, लेकिन इससे बड़ी पहचान यह थी कि वे लोहिया और जेपी के सामाजवादी विचारों से प्रभावित थे. जय प्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन का भारतीय राजनीति पर कितना असर होने वाला था, इसकी पहली झलक 1974 में देखने को मिली थी. जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वो शरद यादव थे. 27 साल के शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे. जेल से ही उन्होंने जबलपुर का चुनाव जीत लिया. 1977 में जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक शरद यादव के चुनाव से ही लोगों को मिली थी. लेकिन शरद यादव किस मिट्ठी के बने थे, इसकी झलक एक साल बाद देखने को मिली. वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार जयशंकर गुप्ता याद करते हैं, "समाजवादी राजनीति में शरद यादव बड़ी संभावना के तौर पर उभरे थे. 1976 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय लोकसभा का कार्यकाल पांच साल के बदले छह साल कर दिया था. इसके विरोध में दो ही सांसदों ने इस्तीफ़ा दिया था, एक थे मधु लिमये और दूसरे थे शरद यादव."