First super computer: जब अमेरिका ने देने से किया इंकार तो भारत ने खुद ही बना डाला सुपर कंप्यूटर,पढ़े पूरी कहानी

न्यूज़ डेस्क रिपोर्ट

First super computer: जब अमेरिका ने देने से किया इंकार तो भारत ने खुद ही बना डाला सुपर कंप्यूटर,पढ़े पूरी कहानी

सूचना क्रांति के इस दौर में हमारा देश भारत काफी आगे निकल चुका है. शहर ही नहीं, गांव के लोग भी बड़ी तेजी से डिजिटल (Digital) हो रहे हैं. साइंस और टेक्नोलॉजी (Science and Technology ) के क्षेत्र में भी हम अमेरिका, ब्रिटेन, रूस जैसे देशों के साथ अगली कतार में चल रहे हैं.लेकिन एक समय ऐसा था, जब टेक्नोलॉजी में हम विकसित देशों से पीछे चल रहे थे. यह किस्सा है उस दौर का, जब अमेरिका ने सुपर कंप्यूटर (Super Computer) बना लिया था. भारत सरकार अमेरीकी कंपनी को पैसे देकर खरीदना चाहती थी. लेकिन अमेरिका की पॉलिसी के कारण ऐसा नहीं हो पाया. और फिर भारतीय वैज्ञानिकों ने खुद ही एक बेहतरीन सुपर कंप्यूटर बना डाला.

आप सोचिए कि आज मोबाइल पर इंटरनेट के जरिये एक क्लिक पर कितना कुछ हाजिर हो जाता है, लेकिन करीब दशकों पहले पहले एक ऐसा दौर था, जब कंप्यूटर से दुनिया का परिचय ही नहीं था. ब्रिटिश गणितज्ञ और आविष्कारक चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) ने 1830 के दशक में दुनिया के पहले ऑटोमैटिक डिजिटल कंप्यूटर का आविष्कार किया था. उन्हीं के प्रयासों की बदौलत आज हम कंप्यूटर का आधुनिक वर्जन इस्तेमाल कर रहे हैं.

कंप्यूटर के बाद सुपर कंप्यूटर बनाने में जुटे वैज्ञानिक

चार्ल्स बैबेज ने कंप्यूटर का आविष्कार कर दुनियाभर में क्रांति ला दी थी. इसके बाद कंप्यूटर में बदलाव किए जाते रहे और इनका मोडिफाइड वर्जन सामने आता रहा. फिर वैज्ञानिक सुपर कंप्यूटर (Super computer) तैयार करने में जुट गए. India Today की रिपोर्ट के मुताबिक, आखिरकार 1964 में अमेरिकी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर सीमोर क्रे (Seymour Cray) को कामयाबी मिली और दुनिया का पहला सुपर कंप्यूटर CDC 6600 सामने आया. बता दें कि किसी भी देश के लिए सुपर कंप्यूटर का बड़ा ही महत्व होता है. मौसम और जलवायु की जानकारी और शोध वगैरह से लेकर सैन्य हथियार बनाने तक इसका इस्तेमाल होता है.

अमेरिका ने बनाया पहला सुपर कंप्यूटर

‘सुपर कंप्यूटर’ बनाने वाला दुनिया का पहला देश अमेरिका था. तब भारत को भी सुपर कंप्यूटर की जरूरत थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1988 के आसपास भारत ने इसे खरीदने का फैसला लिया. सुपर कंप्यूटर की कीमत 70 करोड़ रुपये के करीब थी. उस वक्त 70 करोड़ रुपये बहुत होते थे. इसके बावजूद भारत ने निर्णय लिया कि वह सुपर कंप्यूटर खरीदेगा ही खरीदेगा. इसके लिए भारत ने अमेरिका से बात की.

जब अमेरिका ने सुपर कंप्यूटर देने से क​र दिया इनकार

भारत ने सुपर कंप्यूटर खरीदने के लिए अमेरिकी कंपनी क्रे (Cray) से संपर्क किया. तब अमेरिका की पॉलिसी कड़ी थी. किसी भी अमेरिकी कंपनी को अपना सामान विदेश में बेचने के लिए यूएस सरकार से अनुमति लेनी होती थी. कंपनी ने भारत को ‘सुपर कंप्यूटर’ बेचने से पहले अमेरिकी सरकार से अनुमति मांगी तो सरकार ने इनकार कर दिया. अमेरिकी सरकार का मानना था कि भारत इसका इस्तेमाल रिसर्च के लिए नहीं, बल्कि सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करेगा. और ऐसे में आखिरकार भारत को उस वक्त ‘सुपर कंप्यूटर’ नहीं मिल पाया.

तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने बुलाई मीटिंग

भारत को सुपर कंप्यूटर चाहिए था. सो इसको लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने देश के प्रमुख वैज्ञानिकों की एक बैठक बुलाई और उनसे पूछा कि क्या हम सुपर कंप्यूटर नहीं बना सकते? तब वरीय वैज्ञानिक विजय पी भटकर (Vijay P Bhatkar) ने कहा, क्यों नहीं! हमारे वैज्ञानिक भी उतने काबिल हैं. जब पीएम ने समय और लागत के बारे में पूछा तो भटकर का कहना था कि हम अमेरिका से कम समय में सुपर कंप्यूटर बना सकते हैं और जितने में हम अमेरिका से सुपर कंप्यूटर खरीदने को तैयार थे, उससे बेहद कम लागत में हमारे वैज्ञानिक इसे तैयार कर सकते हैं.

.. और भारतीय वैज्ञानिकों ने कमाल कर दिखाया

वैज्ञानिकों संग बैठक में विजय पी भटकर की बातों से तत्कालीन पीएम राजीव गांधी बहुत प्रभावित हुए और सरकार ने ‘सुपर कंप्यूटर’ तैयार करने की अनुमति दे दी. वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट को नाम दिया- C-DAC. महज 3 साल के भीतर वर्ष 1991 में भारत ने अपना पहला सुपर कंप्यूटर बना लिया. वैज्ञानिकों ने इस सुपर कंप्यूटर का नाम ‘परम’ (PARAM) रखा.

सुपर कंप्यूटर बनाकर भारत ने अमेरिका समेत दुनियाभर के देशों को चौंका दिया था. यह बात अमेरिका को हजम नहीं हुई और उसने भारतीय सुपर कंप्यूटर के कमजोर होने की अफवाह फैला दी. हालांकि भारत ने इंटरनेशनल एग्जीबिशन में अपने सुपर कंप्यूटर ‘परम’ का प्रदर्शन कर अमेरिका समेत दुनियाभर में खुद को साबित किया. ‘परम’ दुनिया का दूसरा सबसे तेज ‘सुपर कंप्यूटर’ साबित हुआ.

अमेरिकी सुपर कंप्यूटर ‘CDC 6600’ के लिए भारत 70 करोड़ रुपये देने को तैयार था, जबकि ‘परम’ की लागत 3 करोड़ रुपये के करीब ही पड़ी. कम कीमत होने के कारण ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा समेत कई देशों ने भारत से सुपर कंप्यूटर खरीदे.