दिव्यांगजन की समाज में प्रभावी उपस्थिति तथा उनके बेहतर जीवन के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा जरूरीः न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिन्धु

Girish Saini reports

दिव्यांगजन की समाज में प्रभावी उपस्थिति तथा उनके बेहतर जीवन के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा जरूरीः न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिन्धु

रोहतक। दिव्यांगजनों के मानवाधिकार को सुनिश्चित करने के लिए शासन-प्रशासन के साथ-साथ समाज को सभी वर्गों की संकल्पबद्धता के साथ महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के विधि विभाग के तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ह्यूमन राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी इन इंडिया: इस्युज एंड चैलेंज्स विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिन्धु ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी इरा सिंघल बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रही। न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिन्धु ने अपने संबोधन में कहा कि दिव्यांगजन की समाज में प्रभावी उपस्थिति तथा उनके बेहतर जीवन के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा जरूरी है। शिक्षा समाज में विभिन्न समस्याओं को दूर करने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि प्रदेश-देश में अधिक से अधिक वोकेशनल तथा स्पेशल एजुकेशन संस्थानों की स्थापना की जरूरत है। ताकि दिव्यांगजन को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके। उन्होंने एमडीयू द्वारा मूक एवं बधिर के लिए विशेष पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की पहल की सराहना की। न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिन्धु ने दिव्यांगजन के लिए उपलब्ध संवैधानिक प्रावधानों का विशेष उल्लेख अपने संबोधन में किया। विशिष्ट अतिथि इरा सिंघल आईएएस ने अपने संबोधन में दिव्यांगजन के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को दिव्यांगजन के प्रति संवेदी होना होगा। इक्वैलिटी नॉट चैरिटी, एम्पैथी नॉट सिंपैथी का मंत्र इरा सिंघल ने दिया। उन्होंने उपस्थित जन के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। हरियाणा वेलफेयर सोसायटी फॉर पर्सन्स विद स्पीच एंड हियरिंग इंपेयरमेंट की अध्यक्ष डॉ. शरणजीत कौर ने अपने व्याख्यान में कहा कि दिव्यांगजन के लिए अर्ली इंटरवेंशन परिवार से शुरू होना चाहिए। दिव्यांगजन को बेचारगी नहीं, सम्मान का स्थान समाज में चाहिए। उन्होंने दिव्यांगजन के आर्थिक सशक्तिकरण की भी वकालत की। कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमें समाज में दिव्यांगता को मानवीय विविधता के रूप में स्वीकार करना होगा। शिक्षा के जरिए दिव्यांगजन के लिए सामाजिक संवेदीकरण की वकालत कुलपति ने कही। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों, विशेषकर विश्वविद्यालयों को दिव्यांगजन के कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए कार्य करना होगा। इस संबंध में एमडीयू में सेंटर फॉर डिसेबिलिटी स्टडीज की स्थापना की गई है। दो डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस संवेदीकरण को मिशन के रूप में समाज में स्थापित करेगा। कार्यक्रम में विधि विभागाध्यक्ष तथा विधि संकाय अधिष्ठाता प्रो. कविता ढुल ने स्वागत भाषण दिया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की थीम के बारे में डॉ. प्रतिमा देवी ने जानकारी दी तथा मंच संचालन किया। रजिस्ट्रार प्रो. गुलशन लाल तनेजा, डीन सीडीसी प्रो. ए.एस. मान, चीफ वार्डन बॉयज प्रो. सत्यवान बरोदा, विभिन्न विभागाध्यक्ष, रोहतक जिला न्यायिक अधिकारी, प्राध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी, मीडिया कर्मी इस संगोष्ठी में मौजूद रहे। संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में लगभग 200 प्रतिभागी शामिल हुए।