‘बागेश्वर धाम सरकार’ धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देने वाले श्याम मानव कौन हैं?

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‘बागेश्वर धाम सरकार’ धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देने वाले श्याम मानव कौन हैं?

आषाढ़ एकादशी का दिन है. पंढरपुर में एक संत से किसी ने पूछा, 'क्या बाबा मंदिर से भगवान के दर्शन करके आये थे?' इस प्रश्न पर, लोगों की भीड़ से भरे हुए चंद्रभागा घाट की तरफ़ हाथ से इशारा करते हुए बाबा ने कहा, "जब तुम विट्ठल को अपने सामने जागते, बातें करते और नाचते हुए देखते हो तो मंदिर क्यों जाते हो? आप जिस तरफ़ भी देखो उधर विट्ठल ही समाया है." पंढरपुर में ये उत्तर संत गाडगे बाबा ने दिया था.संत बाबा गाडगे ने पूरे महाराष्ट्र की यात्रा की, लोगों को सफ़ाई और स्वच्छता का महत्व समझाने के लिए जागरुकता अभियान चलाया, जगह-जगह कीर्तन किए. वो महाराष्ट्र को अंधविश्वास से मुक्त करने का प्रयास कर रहे थे. ऐसा करते हुए उन्होंने श्रद्धालुओं के मन में दुविधा नहीं डाली. लोगों के विश्वास को अचानक ख़त्म करने के बजाए सच्चाई क्या है उन्होंने सिर्फ़ ये दिखाने की कोशिश की. उन्होंने सिर्फ़ लोगों को सत्य की राह दिखाई. सत्यशोधक समाज के नेता और बालासाहेब ठाकरे के पिता प्रबोधंकर ठाकरे गाडगे बाबा के इस रवैये के बारे कहा करते थे, " बाबा गाडगे ने लोगों की श्रद्धा को किसी कसाई की तरह ना काटते हुए धीरे-धीरे बुद्धिवादी तर्क दिया." अंधविश्वासों का विरोध करने और अवांछनीय प्रथाओं को रोकने का यह सुधारवाद 'अभियान' महाराष्ट्र में पहले भी चलता रहा है. अंधविश्वास का इस्तेमाल कर लोगों को गुमराह करने वाले और जादू-टोना करने वाले बाबाओं और तांत्रिकों के ख़िलाफ़ क़दम उठाने वाला पहला राज्य महाराष्ट्र ही था जहां जादू-टोना विरोधी क़ानून भी पारित हुआ है. महाराष्ट्र का ये क़ानून और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ चला अभियान फिर से चर्चा में है. वजह हैं मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जिन्होंने हाल ही में नागपुर में कार्यक्रम किया था. धीरेंद्र शास्त्री लोगों का दिमाग़ पढ़ लेने का दावा करते हैं. महाराष्ट्र में अंधविश्वास उन्मूलन समिति के राष्ट्रीय समन्वयक श्याम मानव ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती दी है. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देते हुए कहा था कि अगर वो लोगों का दिमाग़ पढ़ लेने के अपने दावे को साबित करते हैं तो उन्हें 30 लाख रुपये का ईनाम दिया जाएगा. लेकिन धीरेंद्र शास्त्री ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया और वो नागपुर का कार्यक्रम छोड़कर चले गए. बाबा धीरेंद्र शास्त्री मूल रूप से मध्यप्रदेश के गढ़ा गांव के हैं, जहां वो बागेश्वर धाम के नाम से अपना धार्मिक आश्रम चलाते हैं. धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देने के बाद से विवाद बढ़ता ही जा रहा है. श्याम मानव को जान से मारने की धमकियां भी मिली हैं. इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री ने भी धमकियां मिलने का दावा किया और उन्होंने मध्य प्रदेश के बमीठा थाने में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत भी दर्ज कराई है. श्याम मानव महाराष्ट्र के एक चर्चित अंध-विश्वास विरोधी कार्यकर्ता हैं, वो पर्सनेलिटी डेवलपमेंट क्लास लेते हैं, सम्मोहन विशेषज्ञ हैं और विचारक के रूप में भी जाने जाते हैं. वो आत्म-सम्मोहन के माध्यम से पर्सनेलिटी डेवलपमेंट की कार्यशालाएं करते हैं और अनेकों लोगों को उन्होंने आत्म-सम्मोहन की कला सिखाई है. श्याम मानव का जन्म 9 सितंबर, 1951 को महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के देवली में हुआ था. उनके पिता ज्ञानदेव भी कुछ समय के लिए विनोबा भावे के निजी सहायक थे. वे गांधीवादी थे और लंबे समय तक उन्होंने विनोबा भावे के साथ काम किया था. श्याम मानव की मां कमल एक शिक्षिका थीं. बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कार पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने उठाए सवालअंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर्स डिग्री प्राप्त श्याम मानव ने एक गांव के कॉलेज में अंग्रेज़ी का अध्यापन भी किया है. अपने कॉलेज जीवन के दौरान, वह तरुण शांति सेना और जयप्रकाश नारायण की छात्र युवा संघर्ष वाहिनी में भी शामिल थे. 1975-76 के दौरान आपातकाल का विरोध करने पर उन्हें 9 महीने की जेल हुई. उन्होंने लोकमत, तरुण भारत और नागपुर पत्रिका जैसे प्रकाशनों के लिए लेख भी लिखे हैं. अंधविश्वास को ख़िलाफ़ लड़ाई अधिकांश घरों की तरह श्याम मानव का घर भी अंधविश्वासों से भरा हुआ था. उनके घर में रूढ़िवादिता और विभिन्न बाबाओं का प्रभाव भी था. उनका मानना ​​था कि विज्ञान के पास बहुत से सवालों के जवाब नहीं हैं. 1981 में किर्लोस्कर पत्रिका में स्तंभकार के रूप में काम करते हुए उनकी विचारक बी. प्रेमानंद से मुलाकात हुई. बी प्रेमानंद के कार्यक्रम में मानव को कई सवालों के जवाब मिले. उसके बाद श्रीलंका के डॉ. अब्राहम कोवूर की किताबों ने उनके विवेकवादी विचारों को और आगे बढ़ाया. 1982 में स्थापित अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की नींव रखने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. ऐसा शख़्स जिसे उसके शरीर के चलते लोगों ने भूत-प्रेत कहा वे कहते हैं कि वे भगवान और धर्म के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन वे भगवान और धर्म के नाम पर लूट के ख़िलाफ़ हैं. जादू-टोना विरोधी क़ानून में योगदान महाराष्ट्र अंधविश्वास उन्मूलन समिति की स्थापना डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने की थी. यह समिति अखिल भारतीय अंधविश्वास उन्मूलन समिति से भिन्न है. इस क़ानून के निर्माण के लिए श्याम मानव और नरेंद्र दाभोलकर ने विशेष प्रयास किया था. यह बिल 2004 में महाराष्ट्र विधानसभा में पेश किया गया था, लेकिन इसका काफ़ी विरोध हुआ. विधान परिषद ने इसे मंजूरी नहीं दी. इसे 2011 में फिर से पेश किया गया था.20 अगस्त 2013 को डॉ. दाभोलकर की पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने तुरंत इस क़ानून के लिए अध्यादेश पारित किया. 18 दिसंबर 2013 को ये विधेयक पारित हुआ और क़ानून बन गया. इसका नाम 'महाराष्ट्र मानव बलिदान और अन्य अमानवीय, अघोरी और अत्याचारी प्रथाएं और काला जादू अधिनियम, 2013' है. धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती नागपुर में धीरेंद्र शास्त्री उर्फ ​​बागेश्वर धाम सरकार के कार्यक्रम को अखिल भारतीय अंधविश्वास उन्मूलन समिति ने चुनौती दी थी. श्याम मानव ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देते हुए कहा था कि वो कुछ परीक्षाएं लेंगे और अगर धीरेंद्र उन्हें पास कर लेते हैं तो वो उन्हें तीस लाख रुपए का ईनाम देंगे. श्याम मानव ने कहा था कि वो धीरेंद्र शास्त्री के समक्ष दस लोगों को खड़ा करेंगे जिनके नाम, पिता का नाम, फोन नंबर और उम्र की पहचान धीरेंद्र शास्त्री को करनी होगी. इसके अलावा उन्हें दूसरे कमरे में रखी गई वस्तुओं की पहचान करने की चुनौती भी दी गई थी. श्याम मानव ने कहा था कि "यदि धीरेंद्र शास्त्री दो बार ऐसा करने में कामयाब होते हैं और वो 90 प्रतिशत प्रश्नों के भी सही उत्तर दे देते हैं तो अखिल भारतीय अंधविश्वास उन्मूलन समिति के प्रमुख के रूप में उनके चरणों में सिर रखकर क्षमा मांगूंगा और समिति की ओर से 30 लाख का इनाम दूंगा." मानव ने कहा था कि अगर धीरेंद्र शास्त्री पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे तो वो अपनी समिति का काम बंद कर देंगे जो पिछले चालीस सालों से धर्म के नाम पर लूट रहे लोगों का सच सामने लाने का काम कर रही है. श्याम मानव कहते हैं, "अगर महाराज के पास दैवीय शक्ति होती तो वे उसका उपयोग देश की सुरक्षा के लिए करते. अगर वो दिव्य शक्ति का उपयोग देश के करेंगे तो देश में कहीं भी बम नहीं गिरेगा क्योंकि उन्हें पहले से ही पता चल जाएगा कि बम कहां तैयार हो रहे हैं. इससे देश में कहीं भी आतंकवाद की कोई घटना नहीं घटेगी. इसलिए इसे वैज्ञानिक कसौटी पर साबित करने की जरूरत है. भले ही हमें (समिति को) हार माननी पड़े, लेकिन इससे भारत का नाम दुनिया में होगा." नागपुर में समिति की चुनौती धीरेंद्र शास्त्री ने स्वीकार नहीं की. लेकिन बाद में उन्होंने बागेश्वर धाम जाकर अपनी शक्ति को वहां सिद्ध करने की बात कही. श्याम मानव ने इस पर अपनी राय व्यक्त की है. वे कहते हैं, "धीरेंद्र शास्त्री ने नागपुर आकर दैवीय शक्ति के विभिन्न दावे किए. हमने यहां उन्हें चुनौती दी है. उन्हें अपनी शक्ति को यहां साबित करना चाहिए. उनके दावों के ख़िलाफ़ जादू-टोना विरोधी क़ानून लागू होता है. उन्हें नागपुर में सभी तरह की सुरक्षा प्राप्त है. यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आंबेडकरवादी विचारधारा में भी संवाद होता है, उन्हें यहां आकर अपनी शक्ति साबित करने में क्या हर्ज है." धीरेंद्र शास्त्री को शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि अगर धीरेंद्र जोशीमठ के घरों की दीवारों को चमत्कार से भर दें तो हम उनका स्वागत करेंगे. उन्होंने कहा, "हम उनके लिए फूल बिछाएंगे कि आओ, ये जो हमारे मकान में दरार आ गई है, हमारे मठ में आ गई है, उसे जोड़ दो." उन्होंने कहा, "सारे देश की जनता चमत्कार चाहती है कि कोई चमत्कार हो जाए. कहां हो रहा है चमत्कार. जो चमत्कार हो रहे हैं, अगर जनता की भलाई में उनका कोई विनियोग हो तो हम उनकी जय-जयकार करेंगे, नमस्कार करेंगे. नहीं तो ये चमत्कार छलावा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं है."